पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२७९

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मिश्रषन्धुधिनाद । [५० १७१। वड़ा भावपूर्ण प्रन्य घनायो । यं महाराज कविकेट विदे। के कॅपवृक्ष थे। इनकी प्रशंसा में कवीन्द्र ३६ घनाये हुए बटुत से उन्दू मिलते हैं । क्यान्ट वा इनों समा में थे, परन् रस चन्द्रोदय बनाने पर अमेठी के राजा हिम्मतसि पुजा में ही उन्हें फन्द्र की उपाधि दी थी । राजा हिम्मतसि के पीछे फवन्द बहुत दिन तक राज्ञी गुरुदत्त सि एज्ञा के समय में भी अमेठी में रहते है । राजा गुरुदत्तसिजा ने एक बार प्राध के नवाब झपादन ग से युद्ध हुआ ! नपाय सादृत पां में बाढ़ अमेठी की चारै| और से घेर लिया । राजा गुन्दुत्तसिंहजी जंगल को निकले ज्ञाने का विचार करके गद ६ घाइर निकले, परन्तु पार किसी पार से न निकल कर जिधर स्वयं नयाध साधे उधर ही से चले और लड़ते भिड़ते तथा बहुत से शप के फारते हुए जंगल का नकले चले गये । इसी का वन कबीन्द्र जी ने नवा छन् द्वारा कियाः- समर अमेठी के सरेल गुरुदत्त सिद् सादर की सेना समसेरन से भानी है। मनत बन्द काली झुलस असीसन के । सीसन को इसकी जमात सरसानी है । तह पक गिनी सुझट व्रापरी है। | उड़ी सेनिन पियत ताकी उपमा बखानी है। याली छ चिनी फी की जान तरंग माने म हेत पीबत मीठ मुगलानी है ॥