पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६१८ TRन्युविना। [म० १७t! | अदि रग सह पति ते सद्दज मधुर मुख कन्द। - घेत अनि । नलिन दिन मग्स सलिल मकरन्द ॥ भये रसाल रसाल हैं गरे पुडुप मकरन्य। मान सोने तारत नुत मुमत भ्रमर मद मन्द ॥ ( ७१५ } तोषनिधि । यं मयि चतुर्भुज गुरु के पुत्र ऋगवेरपुर ( सिंगर) जिला गद्दामाद के रहने वाले थे 1 इन्दिाने संपत् १७९१ में नधानिधि नामक रसभेड़ और भाव-भैद वा १८३ पृष्ठ वैार ५६० छन् वा कि पड़ाही घर्दिया अन्य यनाया । उसी में कवि ने अपने विपय में उपर्युक्त बातें लिखी ६ । विनयशतक और नवशिष्ठ नामक इन दो और अन्य धेशि में मिले हैं। वेपनधि अपनी अंग के गुई। आपने अपनै ग्रन्थमें ग्राचावा गी प्रदर्शित की है और कई मार काय पर अच्छे विचार प्रकट किये हैं। कुछ सैमेकी यह राक मत है कि इनका रचना-चमत्कार दास जी के समान है। इन्दी में अनुप्रास और यमक का प्रयॆम केया है और भाषपूर्ण गम्भीर छन्द आपकी रचना में बहुत पाये जाते ६ । सुधानिधि पैसा बिलय घना है कि जिस एक ग्रन्थ में ही ये सुववि कई जा सकते हैं। इक दीनी अर्धनी करें घर्तियां झिनकी कर्टि छैनो छ में करें । इफ दास धरे अपीस भरे इफ हैसि ६ नि लला में करी कदि ताप झुट्ठी जुग जंयन से उर भुज स्यामै सडामें करें । मैज़ अम्मर, मन’ कदम्य तरे मज पामें कला मुलार्म करे ।