पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२८९

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१६ मियन्शुविनोद । [ १० ११} प्रत्येक विषय फा अस साफ़ और सुगम रीति से इन्होंने सम- झाया ६, पैसा केाई गी कवि नहीं समझा सका है। कविता में अपरिचित पाठक भर इस मंत्र के पद पर दशगि पवित्रा समझ सकता है । इमारी समझ में आचार्यता की दृष्टि से देखने पर |फेयर चार सत्कापियों ने दाग फचिंता का वर्णन साफ़ और सुदर किया है, अर्थात् ६य, श्रीपति, सोमनाथ मार दास । इन सत्र में समझाने की रीति सेमिनार्य जी की प्रशंसनीय है। केशवदास और कुलपति मिथ भी आचार्य है, परन्तु उन्होंने एक तै दशग कविता नहीं की, और दूसरे इन दोनों की कयिता कठिन है ! रसपीयूपनिधि कायोत्कर्ष में भी प्रशंसनीय है। आकार में यद दास के काव्यनिर्णय से सपाया होगा। होमनाथ फी भापा शुद्ध प्रज्ञ भाया है। इसमें मेलित घर्छ घदुत फम माने पापै ६ चार समस्त ईय पहुत ही मधुर भाप में लिया गया है। इनका यमक, अनुप्रास आदि का इष्ट न था और ये उति राति से अपनी कविता में उनको व्यवहार करते थे। शन्द के स्वरूप में ये महाशय शुद्ध संस्कृने के स्थान पर हिन्दी की रीदि जाहि पसंद करते थे। वृन्दावन की जगह ये दिदीबन उियाते थे। इनकी करिना में पद छीं की संख्या पदुव अधिक न मिलेगी, परन्तु इनकी रचना निर्दोष है और पकास पनती चली गई है, ऐसा न हो कहाँ डुत उत्तम है और कहाँ शिथिल पड़ गई हो । ये महाशय देव और मतिराम को भांति चमत्कारिक छन्द नहीं लिझ सकते थे, परन्तु इनफी भापा बहुत ही संतापजनक है। आप