पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

| धिपन्धविना । | 4० १७१। निय संसय जीबन मिले भेद न जान्यो शाद। प्रात् सबै निसि सि के दुयी भाव दरमान । (७२३) रसिक प्रीतम ने नयीला सचद् १७९५ में रची। | यह प्रस्थ हमने नहीं देसा, पर घीज में इसका हाल लिम्रा है। होश में 'शून्यापनसत' नामक इनषा पर चार प्रन्य मिला है। (०२३) रघुनाथ । ये महाशय काशिरद्धि महाज्ञ यरियोद्धसिंह के ज्ञक ये र कार में ही रहते थे। इनके पुत्र गोकुलनाथ, पैर गैरपीनाथ र गोकुलनाथ के शिष्य नदेय ने महाभारत को भापानुपाद भाया। ये महाशय धीजन थे। ठाकुर दिवसिजी ने इनके काव्य कलाधर, रसिश मैन, जति मेहन पर इक भत्सव नमक चार ग्रन्थों के नाम लिख कर यट्स भी लिखा है कि इन्दी ने सतसई की टोका भी बनाई है। इनके प्रथम तीन अन्य दमारे पास हैं, जिन में से जगनाइन' राजा वीजा के पुस्तकालय से में प्राप्त हुआ है। काव्यकलाधर भोर रसिकमाइन एमारे पास इस्त लिखित हैं। रघुनाथ मैं अपने अन्य (जो हमारे पास हैं) ससद् १७,६ से १८०७ तक बनाये । कानरेश ने इन घी चैारा प्राम दिया, जिसमें इनका कुम्य रहा। इन्हों ने महाराज वाग्यज्ञप्ति के पूर्व युद्ध में मसाराम और सीटू मिश्न का पर्णन किया है मेर यह भी लिया है कि महाराजी वरवंडसि६ ने चिलपिडिया का । गद ज्ञाता था।