पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/२९९

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| पिधुदिनै । . [१० १०३६ चार या समाप्त गर्ग, यज्ञा ६ मन्नर , पथरि ६ काम हुरुपी दर,फन ६ ॥ अपम भईया रे, राहुन लेया , यः एनाध सं यार थी मन ।। था वा य न सिर परेन शाज्ञी गरी प्रज़न फा, राङ्गी मुमटन का ॥ के सेस देस है निसि पुमी ६ यि । सदन उचाय पानी जस असपर पी । कधी छिरि चय। इसी पी देरघति ।। देसी से उबल पिरन से च फी अनि दिन पाठ श्री नृपाल मैदलील इ. कई रघुनाथ पाप सुधरी अनन् । झटत फ़ारे पर्धा फूल्य है कभट तास अनछ ममन्द का घार मकरन्द की । में महाशय प्रजभाषा में कविता करते थे । इनकी भाषा साधारण और कविता अच्छे हैं । इनके भाय अच्छे देते थे, परन्तु भापा प्रायः विधिळ रहती थी। की कविता में टकसाली छन्दों का प्रभार ही है। इनकी नयना साहित्य के प्राचार्यों में है। भार कविता की दृष्टि से इम है पद्माकर की अंची में पड़े हैं। इन्गे एकाध स्रान पर ही बाली पय' प्रति मिश्रित शाप में भी कविता की है। इम मात्रा का ' गुलरियारला मित्र (प्रजराज } देखा है। वह मन्च न्नड़ी चाल्ली में फुट विषयँ पर लिखा गया है,