पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३००

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रघुनाम] . उत्तरालंकृत करए । पातु (समें भी पार की प्रधानता है। आहार में यह कालिदास हे वधूवनेश्द के बराबर है। उदाहरण पिए - याप दरियाव पास नदियों के जाना नहीं - दरियाध पास भी हाय से घायैमा । दरअत चलि आसरे क्वा घाभ दात न । दरअत ही के अासरे या चल पावै !! मेरे ६ लायक नै थी कच्चना है। कहा मैंने रघुनाथ मेरी मति न्याव ही के गोचैग । ५६ मेताज़ अप की है नाप जसकेन आप कैसे चलै चह आप पास बनी।

  • माम-(२४) जनकराज किशोरीशरा अमेध्यांचासीं ।

प्रन्य-१ प्रादेलिरहस्यीपिका, २ सादाराचरित्र, ३ विवे- सारनंदिका, ५ सिद्धांतचेस, ५ बरिदली, ६ ललित- गादीपक, ७ कवितावली, ८ जानकीकरणाभरण, ५ सोताराम सिद्धान्तमुक्ताचली, १० अनन्यरगिनी, ११ सोनाराम पसरतच गिटी, १५ आत्मसंचधदर्पण, २३ ईलिकनैबीपिका, १४ चेदतिसरधुनिदीपिका, १५ रसीपिका, १६ देहावली, १७ पुरकरनाभरन । . फघित-काल-१७९७। विवरया–न्ने जभाषा तथा संस्कृत में भी कई घंय इनाये। ये शापद् अयोध्या के विरगियों में हैं। इनकी पुस्तके