पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३०१

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मिस्रषन्धविनाइ । [१० १०॥ दुमने दरार छतरपुर में देखा है । इनकी शिाना साधारण भणी में है। फुले फुसुम झुम विविध रंग सुग्घ के चहुं चाम् | त मधुप मधुमत नाना । रज अँग फाव । सारी सुगध सुम' चीत नैदिक यदंत। परसत अनंत उदीत दिये अभिलाम्म्र कामिनि फत ॥ (७२५) महाराणी वांझावती जी उपनाम ब्रजदासी । ये जयपुर रायान्तर्गत लिघाण में छचा राजा आनन्द्रभनी प्रदेश मेव $ पुत्री थी और सवत् १९७६ में माप के महाराजा सिंह से इनकी विवाह हुआ था । इन्धा ने श्रीमद्भाग मत झा छन्दबद्ध उच्था किया जा घशी मागवत के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें देहाचपाइयों का अधिपत्य ६ र इसकी भाषा अज्ञमाषा पथ घेरवाडी का मिश्रण है, जिसमें फ फ रापू, छाना के इन्द मिल गये हैं। इनकी भाषा अच्छी और वदिती नपि ६ । थे म मधुसुदनदास जी की या में हैं। नमो नमै श्री इस ममी सनकादि झेप हरि । नभी नमी श्री नार्द देव कप ज्ञग की समप्तरे॥ नमै नमै श्री प्यासे नमी शुक्देश नु स्यामी ।। नमा परिति आज पिन में मुख्य जु मामी !! पुन ममेर भी शी सुसज्ञ नमै ना नफ, सफल । अरु नमै जना भी भागवत या रूप ले में अक्ल ॥