पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पद्म भी ] । उत्तरार्ली प्रकरण ! ५१५ | इनकी कविया जा हमने देखी है, वह संपत् १८०० से प्रारम्भ हैकर सं० १८४४ तक की है। इसके बाद' का पता नहीं कि इनको परलेाकपास कैसे और किस समय हुआ। पहले मैं पुण्फर के समीप कृष्णगड़ में रहा करते थे, पर पीछे से श्रीवृन्दावन में निवास फरने लगे ! इनके पीछे वाले अन्ध वृन्दावन में चने । इनकी भाषा ब्रजभाषा है और भई परम भनेर नथा लात है। हम इनको दास की झै य का कब मानते हैं। इनके रचित ग्रन्थ के नाम हैं। समय-प्रबंध १ ते १ त १५ । अनुयाम । छै? ? अष्ट्रक, शैली, पचीसी, इत्यादि ४३। गिरि पुन बेली ३३१ इन्द। डिग रूपरंग वेली ३२ छन्द । भक्तिमार्थनावली ३३४ इन्द। चास लीला ३३३ सफ़ा। दिौरा २४२ पृष्ठ राय अठपै । श्रीब्रज प्रेमानंदसागर ३९, पृष्ठ का साइज । इम्ग्यपरिपूजन मंगल ३३२ इन्द। दइ छबि घाटी रजनी क्षेत्र सि रसिक मनमाई। फामन र सीरम की महफन वैलिय सूर जुन्दाई म ल, एस. ए , , ६ ऊत इ. घा] प्रतियघत उन गुरन मुनि मैं तत्र छथि बढ़त अगाधा ।