पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३०६

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चाचा जी ] उत्तरार्द्धकृत प्रकरण ।। मच संधि दुहुने नित उड़दत जब देवा तत्र भरें। पाँई कातुक गैरी सुनि सजनी चित न रहत यक है ।। लेक न सुनी दृगन नई देखी ऐसी रूप निफाई। मैरी तेरी कद्दावली संग ऋग गति मैन निकई ॥ कबहूँ और श्याम तन कई लेाचन प्यासे धार्यं । कड घट जात शिशु की पंछी जी वैचिन भाँर लावै ॥ सुदरता फी हद्द भुरटीधर बेहद छte श्रीराचा । गाधं पु अनंत धरि सार तऊन पूॐ साधा । म्याहू कॉम फरब ६ निफसत पिय अंग प गुमानी। वृन्दावन दिन प किये। इस सेफानन की रानी ॥३॥ नाम-(७३०) कमलनैन हित युग्दावन पार्छ। ग्रन्थ -१ समय-प्रबंध, ३ समय-प्रबंध! समय--१८te ! विधर—पहले ग्रन्थ में पद और दूसरे में प्रथम पद्द घ दोहा इत्यादि हैं। और पीछे चार्तिक । उसमें आठ पहर की पूजा, उत्सव,उपा- एगा इयादि के वन हैं। कविता इनकी साधारण ४ गफ की है। इमने यह अन्य दुरयार छतरपुर में देखा है। इसने कुल १९४ पृष्ठ ,फुसकैप सांची के हैं। समय ज्ञच से मिला है। ये स्वामी हरिवंश दिव के अनुयायी थे। दंपति सैामा आन्न पनी ।। सुहे दागे चालु हामी इथि नई जात भनी ।।