पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३०७

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५ ५। । सं १८०१ दिए अश शुज भार परमपर नय धन नयट धनी ।। कमल न दिन संतत रोजत सम्पति बिपिन मनी ॥ ३ ॥ (७३१) गिरिधर कविराय । इस पनि ने फेवल कुपदलयाओं में करता अन्य इमारे दैपने में नहीं आया, केवल एक ग्रन्थ में इनकी इफ्या है। इनका कोई भई कुन्डलियायै लिबी हुई है। यद् अन्य इमारे पुस्तकालय में वर्तमान है। इस फचि का समय-सम्बन्धी दम काई प्रमाण नहीं मिला । शिवसिदजी ने इनका जन्म काल सवत् १७७० माना ६! | इस कवि की भाषा अवध की प्रामीण भापा हैं। तुकान्छ ढूंढने के लिए इन्होंने कह दो मदेसिल पद्म निर्थक द इम दिये हैं। इनकी कविता में भापा और भास भी कमी कमी हुन भदेसिल हो गये हैं। इनकी मात्रा से यह विचार हेवा है कि ये महाशय अवध के ने घाटे थे। इन्होंने यह कहाँ त्रिपों की निन्दा कर दी है। | इन दो एक घुटिय के होते हुए इस फयि की रचना लनो यथार्थ ६ वि. ससार ने इसकी फजिता फो बहुत अधिकता से अहग्य किया है। ससार पैसा गुणाढ़ी है कि वहुतेरे कविया ने उपन्दी रचना की बहुत कुछ छिपाया और उनके ग्रन्थ मुद्रित्र भी नहीं हुए, परन्तु फिर भी उन भूले और ये हुए ग्रन्थों उत्कृष्ट छन्दों के उसने प्रष्ट कर लिया। उसने रचना की के भो पद भी एक बहुत ही जांच है कि ससार ने उन्हें पसन्द फर। लिया है । यह नहीं कहा जा सकता कि लोकमान्यता सदैव