पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३०८

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| गिरिधर राय ] उत्तरार्धकृत किए। ०२३

  • अच्छे गुणां की फसाटी हासी हैं, परन्तु विशेषतया पैसा ही है ।

गाभी कमी हानेकानेक कार्यों से उत्झए रचनायें भी प्रचलित नहीं होतीं, पर ऐसा प्रायः नहीं होता । इस लाकमान्यता फी जांच में गिरिधरराय की सादिस यहुत छ सन्नी' छरता है। इस कवि ही रचना में कितने ऐसे पद पाये हैं कि आज से हिंदी बोलने वालों की भाषा के भाग कर कनादत के रूप में सूर छोटे बड़े की जुबान पर घर्त्तमान हैं। गोस्वामी तुलसीदासनी फै। देब्राड यार और किसी कवि फी रचना है। गिरिधराय की पाचवा के समान कहनावती में आदर पाने का भाग्य नहीं प्राप्त हुआ होगा। | इस अद्वितीय लेाकप्रियता के घर में ए ग्रह भी है कि इस फर्षि में स्मिघा नीति तया अन्येाकि के घेर किसी विषय पर फाय नहीं किया है। नोति में भी बड़ी गुढे बात केा छड़े वर गिरिर ने ज़ की काम-काज-सम्बधिनी सीधी सादी नीति की है। इनकी कविता भी शुद्ध फाच्यांग के अफर सर्य- साधरियों के प्रसन्न करने वाली है और घई नायिका के ताक झोक, तपा दूर की फाड़ी के छेड़ पर, निया के काम का चार यथार्थ एव सर्व प्रकारेण सच्ची बात कहने वाली है। पसी हृदययादिमी कविता रचने में बहुत फम कविजन समर्थ हुए हैं। इस फोन में बड़ी ज़ोरदार रचना की हैं। यह कद्दता था कि यदि । फाई काम करना उचित है तो एक मिनट की देर में फरके उसे तुरन्त पारना चादि । र उचित घात के वास्ते यद् काय मुरन्त कीर्यारम ऐना पाता है । इसकी पत्तिा राज्य की मौत