पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मिभ्रमन्शुदि । [ सं १८०० दिये ग्रंश भुज भार परसपर नच धन भयल धनी । कमल नैन हित संतत राजन सम्पति पिपिन मनी ॥ १ ॥ (७३१) गिरिधर कविराय । इस कवि ने फेयर कुण्डलियाओं में कविता की है। इनका कोई अन्य इमार देने में नहीं आपा, केवल एक अन्य में इनकी क्या- नये फुपडलियाय डिग्री हुई हैं। यह झन्थ हुमार पुरनकालय में पमान है। इस पब का समय-सम्बन्धी में कोई समस्या नहीं मिला । शिसिंदूजी ने इनको जन्मकाल संवत् १७६० माना है। | इस कपि फी भाषा अवध की प्रामीण भाप है। नुकान्त टूडने के लिए इन्होंने फद्दों को मदेसिल पद्म निरर्थक शब्द बन्न दिये हैं। इनकी कविता में भापा मगर माय भी कभी कभी बहुत मदेसिल हो गये हैं। इनशी भाषा से यह विचार होता है कि यै महाशय अवध के रहने वाले थे। इन्होंने पहाँ कहाँ स्त्रियों की निन्द्रा कर दी है। इन है। एक दिये। के होते हुए भी इस कवि फी रचना लिनो यथार्थ है कि संसार ने इसकी कविता फी हुन अधिकता से प्रहण किया है। संसार ऐसा जुझाई है कि बहुसैरे कवियों ने अपनी रचना फी चहुत कुछ छिपाया और उनके प्रध मुद्रित मी नहीं हुए, परन्तु फिर भी उन भूले और छिपे हुए अन्य के भी। शत्कृष्ट छन्दों की उसने प्रहण फरई छियः । उत्तम रचनाओं की | यह भी एक प्रहुत बड़ी जांच है कि ससार ने उन्दै पसन्द कर दिया है। यह नहीं कहा जा सकता कि लषमान्यता सदैप