पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३१०

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गिरिधर राप] उपराकृत प्रकरण । ७२३ अच्छे शुओं की कसौटी होती है, परन्तु विशेषतया ऐसा ही है। कभी कभी अनेकानेक कारणों में उत्कृष्ट रचनायें भी प्रभालित नहीं होती, पर ऐसा प्रायः नहीं घेता 1 इस स्वाफमान्यता की जाँच में घिराय का साहित्य बहुत ही सुन्दर छहरता है। इस कवि फी रसनामों में कितनेही ऐते पद ' हैं कि आङ्ग चे | दिग्दो पालने वाले की भाप के भाग कर फट्नावत के रूप में घर आ खड़े की बान पर वर्तमान में 1 स्वामी तुठीदासजी की छेड़ फर' और किसी कवि की रचना के निरिधरराय की झविदा के समान कइनवी में मादर पाने का सामाग्य नहीं प्राप्त हुआ है।या। | इस जितोय लावप्रियता के कार में युवा यद भर है कि इस फच ने निघा नाति तपा अन्येाकि के आर किं विपय पर काव्य नई किया है । नीति में भी वही गूढ नाते की छड़ कर गिरिधर ने राज़ की काम-फाजसम्पन्धिनी सीधी सादी नीति की हैं। इनकी कविता भी गूढ काव्यांगों को छोड़कर सर्च साधारण के प्रसन्न करने वाली है और यह नायिकामे के ताक झोक, तप र फी का में झाड़ कर, निया के काम काज और यपाधं गन' सम्मकारेण सच्ची यात' यद्धने वाली है। ऐसी हृदयग्राहिणी कविता रचने में बहुत कम फर्थिजन समर्थ हुए । इस कप में बड़ी जोरदार रचना की है। यए कहती | कि यदि काई फाग करना उचित है और एक मिनट फी देर न करके उसे तुत करना चाहिए । इर उचित मान के घास्ते यद्द कवि तुरन्स कारण देना चाहता है। इसकी पविता चाय पी मौत