पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३११

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अधुथिना। [६० १८०५ वास्तविक काम काज की है। इसे इन। तैप की ४ = में रखते हैं। नि की कविता के उदाहरणार्थ कुछ छन्द्र माचे शिवते ६} की धन धी दूरी ताद में सोने संग। जो सँग रा) ही घने ती करि रानु अपंग ॥ । कटराग्नु अपंग भूल परतीति न कीजै । सा सागन्धे पाय चिच्च में पाक न दी । कहि गिरिधर कविराय फष परतीति न घाफ । सनु सनिस परिये रिय घन घरती जाफ़ी ॥ १ बीती वाई थिरि ६ आगे की सुधि छ । और घन सर्दश में ना ३ चित दे । शादी में चित देइ घात जाई यानि अचे। दुरञ्जन से न केय चिंच में भेद न पाचै । कवि गिरिधर फराप है कम मन परती।। आगे की सुख है मुमुझु धरती से दीर ॥ २ ॥ साई' अपने त्रिस्त फी भूल न कहिये कॅाय ।। तब लगि मन ६ रायै जम्न लगि फाज़ न होय ।। जय हरि काज़ न हार्य भूलि कबहूँ महिं दिये। दुरजन से उठाय पु सियरे है रहिये ।। कद्द गरिधर कविराय यात चतुरन के चाई ।। करतूती झांई दैति पुजन फचिये साई ॥ ३ ॥ बटुरा लेागां का मत है के साई पालै छ्न्य् इनक्री औ के चैहायै हुप हैं, परन्तु दम इस कथन र यथार्थं नहीं समलै,