पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३१४

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उनलंकृत प्रकरः । छ । (७३ ३) ठाकुर । इस नाम के तार फघि हुए और ये सब तुम पावित करते | मैं। इनमें से सम से अधिक प्रसिद्ध शसनी के ठाकुर धे, ज्ञा | दिनाथ के पुत्र और सेवा के पितामढ़ दें 1 इक्रा हछि स्वयं सेवक ने एक छन्द में लिया है, जो छन्द उनकै घम में दिया गया है। इनका ठाकुरेशतक छड़ केाई स्वतन्त्र ग्रन्थ हमने नष्ट देक्षा, परन्तु कदाचित् ऐसा कैई भी हिन्द-कविता-रसिक न होगा, जिसे इन दो सार फुट छन्द न याद् हो । इनका ठाकुर- शतक भारतघन मेल में छुपा है. ब्रिल १०७ फुट छन्द है। इनका सदसैया एक धूसर अन्य है जिसमें सख़ई की टीका है। ये महाशय ज्ञाति वै द्वाभट्ट (भाट) थे। सैवकी अभी हाल तक घतं- मान थे । अनुमान से झाकुर जी का समय संयन् १८ss के लगभग होगा। सिंहसराज में लिखा है कि छाकुर के बहुत से छन्द कालिदास ऊन हजार में मिल हैं। पद ग्रन्थ सैचत् १७५ में समाप्त हुआ। इन इकुर का समय चाहे जितनी दूर ले जाइए, यद्द संव , में इन कवि ने तक नहीं पहुंच सकता, ज्योकि इनके प्राप्त संचव का जन्म संवत् १८२में हुमी था, हो य उस समय खेचक के पिता ४ वर्ष के भी हों और उनमें जन्म-समय ठाकुर भी ४० घर्ष के हो, होभो ठाकुर का जन्म-काट दूर से दूर संवत् ।। १७९२ में पड़ता है। से जारी कै छन्द या है। ठापुर राम के हमें या किसी पंयम ठाकुर के ! इनके पैश में पहले ही से कविता