पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३१५

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हिन्धनः । [ मै १८॥ देतो थी बार इन पंधर में कितने । म कवि गये हैं. किया दृष्टि पर ये रेप में दिया जायमा ! | ठाकुर के पी एन्द हुद ही पनमा नौ में। इनका चचिदा पा पप से हा गुण प्रेग ६ र यह इनके प्रायः सभी इन्दी में वर्तमान है। इनषा गई कि बिना स्नेह ६ ६८ धारण गृ है। इन दि ६ क संद का पना गरल है, परन्तु उमका निमाना मुदिल हैं। इन विटने ही पाने पर यह कहा है कि मद्य तेर किसी न किसी प्रकार ने पो निभा रहे हैं। इन इदी में पद्मा की माया धन अधिक है। ये प्राया ऐसा प्रेमामा नायिवा का वन करते हैं कि जिन्६ समझा कर टीफ मार्ग पर लगाने का प्रदर । नदः पदा घेता, यनु चै स्य तुम हो यादती ६ कि एम है। अप विड़ मुझौं, हम पयो । समझाती है, जो अपना काम करी पेर उद में कुमार्गों से घचा। इनकी नायिका संघाचँदइरयां से मद्दी दावायत हठी है। ये कहती हैं कि हम स्वन्त्र हैं। अपने लिए चाहे जे फुडफरें, फिर किसी दूसरे फैन फ्या पड़ी हैं कि में दिफ करे। इन्दौने प्रेम के बड़े ही पद्रिया छन्द लिखे हैं। उत्कृष्ट छन्दे की मात्रा इस कवि की रचना में घत अधिकता से है। इन्होंने अपने छन्दी में कात्तियों के बहुत फवा है और इनके घर पद स्वयं रुदाक्व हो गये हैं। नमोदिनी पूर्व प्रेमी- मता नापिरमे का इन्दने घड़ा मड़ोली पोन किया है। प्रेम-fiपय ऐसे सच्चे पर टकसाला द प्रायः किं कवि की रचना में नहीं पाये जाते । इन्दने हो के मो यादमी। भी है।