पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३१६

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इ त्र भकरण । ५६ छन्द लिने ६ । एक स्थान पर इन्होंने निर्धनता की निन्दा में सघन का, इट्स बड़ा उपहास व्यंत्रित किया है। यह एक बड़ा ही ज़िन्दः दिछ कवि था। जिस विषय को इसने घन घिया है उसमें इसे पूर्ण तल्लीनता और सहृदयता थी, वरन् यद् कनि पीती हुई सच्ची घटना' सी कहा गया है। | ठाकुर, सेन, चौधा, घन आनंद, आलम और बिहारी आदि ने प्रेम का पैसा सरूवा वर्णन किया है, जैसा कि अन्य बहुत कम कवि वर सके हैं । ये लोग सच्चे प्रेमी थे । ठाकुर की माषा भी बहुत सराहनीय है। इसमें मिलित वर्ग बहुत कम हैं। इन्होंने प्रजभाषा में कविता की है। इस महाकवि ने मानुपीय प्राप्ति और हृदयंगम भाचे एप चित्तसागर की तरंगों का बड़ीही सफलता पूर्वक विचित किया है। ठाकुर का स्वगाव भारतेन्दु वायू हरिश्चन्द् से बहुत कुछ मिलता है । यथा, सेवक सिपाही हुम इन राजपूतन के दान युद ज़रिये में नैक जे न मुरफे। नीति ६ नवाई के मद्दपालन की कवि इन के जै सनेही सानै उर के । ठाकुर त म बरी चेवकूफन के | जरलिम दमाद हैं अदेनया ससुर के। चैीजन के चैार रस मैज़न के पाससाई | ठाकुर कद्दचित ६ पाकर घर के ॥ सेषक के भवीशे की लिखी हुई जीवनो नै वित्त देता है के ठाकुर कवि फाशी के वाद् देवकीनन्दन जी के आश्रय में रहते थे