पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३१९

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१६३ मिश्रबन्युचनेषु । [सं १८२५ कवि ठाकुर फुघरी के बस । | रेस में पिसपासी पिसे गये हैं। मनमेान की दिलचे। मिलिया दिना घारि की चदिनी ६ गया हो । (७३४) शिव । | इस नाम के कई कवि हैद गये हैं, एक पयाग्रपूर ज़िला पहरा- यन्न था वैतागड़ा के रहने वाले अरसैला धन्दीजन थे मेर दूसरे आसनी के । पहले का समय संचत् १८९० के आस पास है और दूसरे फा १९३१ के लगभग । प्रथम के बनायें हुए रसि- विलास, अफारभूपण तथा पिंगल स्वाज़ में मिले हैं। ' रसिकविलास नामक नायिकाभेद का एक विशद ग्रंचे आकार' में रसराज से फुछ चढ़ा है। इसका पंडित युगुलकिशोरी ने देखा है। इनके कुछ स्फुट छंद भी मिलते हैं । इन्होंने प्रजभाषा में कविता की है और यह प्रशंसनीय है। इम इन्हें सैप जी की घी वा कवि समझते हैं:-- सनि के परागन से रागन रचत | भर है रहे मर्दध वैरि झरने झुके प’। प्रगट पलासन हुडासन से सुलगते यन पर मन देत अंग अंग प्रज्ञः ॥ कई शिव काय आई यिपम वसंत रितु । ऐसे में विदेस या फोऊ हिय धर;