पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३२

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५१५ मिक्षयपुयाई । [१६॥ उ ऋतु टाई छाने अटो इयि देखने के मानुप प वा फ६ इन्ट तरसत ६॥ ।। इन्होंने संस्कृत फी भी अच्छी १:धता ६। पपासार नामक इनका एक र झन्ध घेत में मिला६।६ पाश-प्रासी थे। भाम--(२८) माधुरीदारा।। मां--(१) धीराधारमण बिहारी माधुरी, (६) बॉयट विलास माधुरी, उत्कंठा माधुरी, (४) पृन्दावन फेलि माधुरी (५) दानमाधुरी, (६) मानमाधुरी, (७) भृन्दावनािर माधुरी, १८) मनुष्टीला ! कला-काल-१६८51 विचर-अधुसुदनदारी से भी । इस कवि ने इन आर्ट डेटे प्र में शयन किया है। इदाहरण ! जुगुछ प्रेम के इन हित किये इयुल' अवतार ! अ५ अचिः परन कर जग फीने बिलार ॥ निस दिन तिनक्री पर मनाऊँ। निंद गृन्दावन धासई पाऊँ। पप प्यारी की ला गाऊँ! गुलपति शिवाल जाऊँ। (३८६८) सुन्दर ग्रा; ग्वालियर घास घजा याद के इरधार में थे। शाह ने इन्हें प्रथम कविराय की है कि मद्दा फचिराध की उपाधि दी । इन्दने संबछ् १९८८ मै सुन्दर