पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३२४

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इE उत्तरकृतश्करए । ७३ दुल कवि कान्यकुज त्रिपाठी हाहा भै । इन की न बन- || पुरा था। स्फुट अन्दी के अतिरिक्त ‘ क लकंठाभरण' इनाफा पक नत्र अन्ध हैं । इसमें बुल इक्यासी छन्द हैं 1 इलह के स्फुट द पवायच ते नहीं मिलते। कुल मिलाकर इन के एक से • अधिक छन्द न मिलेंगे परन्तु इद थेाहे से इन्ट्री में इस कवि ऐसी मानी सी छाछ म् है कि इसकी कविता पढ़ झर राई नहीं कह सकता कि दुलह के छन्द न्यून ६ । 'म्या मापा अत्तमता, पण कठिा की प्रौढता और या चहुतेरे अन्य J, सभी बाते में दुलह की कविता अत्यन्त सराहनीय है। कंठाभर में हुलह अलंकारों का विषय का है, और कुछ ८१ छन्। में उसे पैसा दिनी दिया है कि कुछ कहा नहीं जाता । ति के अधिकांश ग्रन्थ कविता की भोर में कंठाभरण फे नहीं पा सकते ! पुलद ने लक्षण और उदाहरण पफ ही छन्द में ऐसें मिला दिये हैं कि वहाभरण कंठ करने में बहुत ही सुगम, और पाय में बहुत ही सुदावना हो गया है। फैज्ञाभरण का माहात्म्य दूलहू में निम्न दाई में कहा है- हो या कंठाभरय । कंठ फरेचित लाथ । स गय भा हैं अलंकृती उद्वराय ।। यदि किसी अन्ध का माहात्म्य सम्रा ६, तो इस का सब से पह्ले है। षस्तिष में कंठाभरणा कंटामरण ही । पद मन्थ कैट झरनै चोग्य अश्य है, और ऐसा रोचक है कि दो चार बार पढ़ने से बिना परिशम फैट घेर सकता है । कपिता के म उपनने वाले की