पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५३८ मिश्रन्धुदिनेछ। [सं० [F०२ चाहे दो चार स्पाने पर इसके अलंकार ध्यान में म आचे, परन्तु एक बार समझ लेने से इसके लक्षण और उदाहरण वात ही साफ हो जाते हैं। यह अन्य फुपयानन्द और चन्द्रालाक के मढ़ पर कहा गया है । पूलद्द कविता के प्राचार्य न दे कर केवल अलंकार-सथन्धी प्राचार्यय हैं पैर ऐसे आचार्यों में इनका पर्दै घडुत ऊँचा है। विक्षी कचि नै इनकी प्रशंसा में पाया है कि 'चार धराती लक्रछ कयि दुलई लई राय ।' इस कवि के सध गुण एर यिवार कर हम इसे दाव का समकक्ष कवि समझवै ६। इनकी भाषा र काव्य-मौढ़ता के उदाहरणार्थ हम केवल तीन छन्द नीचे लिपते हैं। इन में से प्रथम दो कंटामय के हैं और तृतीय स्फुट फपिता का। एमान जद्द उपमेयता लेय तह पहिलेाई प्रताप मना । कुच से कमनीय घने करि फुग्म कई कवि दूलद्द लेफि घना ।। उपमान जहां उपमेयता है फिरि ताईि निरादरै दुजे भने । सखि नैनन को जन जाम करो इनके सम साइत कंश पनै । उरज उरज घसे बसे उर आड़े से बिन गुन माल गरे घरे व छाये । नैन कवि दुलह सुराते तुतरातै पैन | देने सुने सुय के समूह सरसायें है। जादक से साल भाल पलकन पीक डीक प्यारे आज बन्द सुचे सुस्त सेवाये है। इति अनात याई फेति मति बसी पाञ्च कान घर बसी घर बसी करि माये है।