पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३६

उत्तरलॅकृत प्रकरण । सारी की सट सघ सरी में मिलाय दोन्ही | - भूपन की जैव जैसे जैन जयित है। कई कवि टूल हिंछपाएँ रद् छद भुन ने देखें सैातिन की वैद इक्ष्यित ६ ।। धावा चित्रसाला ३ निकर गुर जान आगे कीन्ही चतुराई से छम्राई ईयत हैं। सारिका पुकारें हम नाही इभ' नाही ए जु राम राम कहै। भाइ नादों कईयत है ॥ (७३६) कुमारमणि भट्ट। | यह फ दिी -कविता में परम विश था । इसने संवत् १८०३ के गर्भ रसिकाळ नामक रीति का एक इन्कृष्ट ग्रंथ प्रकार में क्राच्यमय के प्रायः क्रशर बरेया। यह ग्रन्थ हमने देता है पर दुर्भाग्यवश गरी प्रति के आदि और अन्त के चार पृष्ट फर्ट झुळे धे, अनः कुमार के सनसंवत् प्रावि का विशेष निय न है। सका। सजकार ने नई फुलचसा माना है और इनका उपयुक्त समय लिया है। इनके अन्य से प्रकट है कि ये मादाय हरि वल्लभ के पुत्र थे [ इनकी कर्पिता द्वारा के बहुत गै के लिये हुए परम मनोहर है। इन्हीं में अनुप्रास भी अच्छ फहे हैं तथा ब, मनैदरचा फी भी अच्छी छटा दस्राई है। हम इन्हें पद्माकर फी क्षेत्रों में रम्पेंगे । इनका अन्य छपवाने के येग्य हैं। सरकार ने भी इनके सात छन्द लिने हैं।