पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पूवकृत मकरया । १+१ ऋगार, नामक नायिकाभेद का अन्ध बनाया, जिसमें उप चाहें लिसी है। सिंहासनसीसी मापक इनका पक दूसरी पन्थ भी | है। आज में छानसमुद्र नामक ग्रन्थ भी इनके नाम लिखा है, | पर पई सुन्दरदात पाहूपन्थी का जान पड़ता है । इनकी वया परम मनहर पर यमकयुक्त है । म इन्हें तय की थी उदाह्र ।। काके गये इन पलटं आधे घसन सुमेरो झु वह नरसन जर लागे हैं। भई चिरिछे कचि सुन्दर सुन साईं अलै६ ई के एस पाये ६ ॥ परसां मैं पाईं हुने गरी ६ पार्दै गहि परसों में पार्दै निसि जाके अनुरागे हैं। केशन वनिती के ही काम बनिता के हासु फैन बनताकै पनि ताके संग आगे है ।। ' बामा' नामक इन का एक और धन्य है। (२८६) पुहूकर कदि । में जाति के कायस्थ मुग्गिय गुजरात सामनापी के पास रते धै। संवत्, १६८१ मैं जहाशाह के समय में कम जाना है कि ये मार्ग में कैद हो गये थे, जहां जैलने में दीने रसरतन नामक अन्य बनाया, जिस पर प्रसन्न कर जहाँझाद में इन