पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३३०

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४३ चाशन ! वालंकृत हरण । कर खेत धीच घरद्धो ३ बिरुझानैर इते | धीरज में रहयो सम्मु कान हु सिपाही के। भूष गवन्त र पाद्दी कै भलक सय स्याही लाई बन मम पात सादी के छ ( ७४१ ) तीर्थराज । इस भमि के दे कवि हुए हैं। एकमे हा संप १८०६ में सम्म सार मावा किया और दूसरे ने १८३० में ६८ मृीं का छानुराग नार्मक ग्रन्थ बनाया ! इन देने की कविता अनुमास-पुरों सपा सक्छ हावी थी । इम इन में ताप वि व श्रेरी में रहेंगे। समरसारवार ढिया घेरे के राजा अचलर्स के यहाँ पैर थैसलाई के रहने वाले थे। समरसार के कृत का उदाहरण । बीर इवान डन ॐ अग्दिर्भ के पठ्या पताछ पाये तुम । न चैस है। साग राश राजत सुमन सब साधु हुन सुमन सुरोज़ ऐसे सास सुमेर ६५ सुन्दर विलन्द भाल पूरने प्रताप जीके जा पर देने और जुझन ने यैस हैं। ये घड़े मार देंस चैसले में तैन पुग्न अचल नदेस मानी दूसरी दिनेस है ।