पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३३२

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भगवन्त राय याची ] उत्तराळंकृत कर। ap विदित थिसाल दाल मालु फपि जाल की है। | मैट सुरपाल फीई सेञ के तुमर कीं। जाही सो चपेटि है गिराए गिरि गट झाले इनि कपाट सेरे लंकन सुमार की । भने भगवंत जासै लागि लागि भेटे प्रभु जाके पास दुश्चन की छुभिता खुमार ने ! आड़े हा अस्त्र की अवाती महातात व शुद्ध मद् माती छाती पवन कुमार की है। बाम१७४३) मल्ल । कविताकाल-६८७ । विचरण-सीन्दी भगवन्त राय असायर चादै के यहाँ थे। ये महा- शय तेघ कवि फी श्रेणी के कवि थे। आजु महा दीनन की दुखि मे इया को हिन्धु आजुहीं पबन के सच गये दुई । ग्राजु दुअराजन का सकल अकाज भयो | अाज़ मजन की थी इंटे गी॥ मल्ल कई अनु सय मंगन अनाथ भये आउद्दी पदाधन फेर करम सी फुटि गर । भूप गंगवन्त सुरधाम की पयान किया दाजु कवि गन है कप तय हुटि गी॥ माम–(७४४) भूयोर। समय-१८८६ ।