पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३५४

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सूईन ] उत्तरालंकृत मरण । ६५६ उपनाम सूरजमल इनके अग्निपदाता थे ।'जान पड़ता है कि ये महाशय भरतपुर में पहुधा हा करते थे और पुराल के साथ युद्धों में भी समिति रहते थे। इन्होंने कड़ा का वन अधेि देय सा किया है। इन्हीं सूरजमल के भाई प्रतापसिंह के यहाँ सामनाथ कवि राते थे । सुदुने कवि ने ज्ञान-चरित्र" नामक एक बड़ा अन्य पनाया और ची माग-प्रश्वारि सभा ने ‘‘न्य- माळा zारा प्रकाशित किया है। इसमें २३४ पृष्ठ छपे हैं, परन्तु यद् जान पड़ता है कि ग्रन्य अपूर्ण है। इसु पदरी ३ अध्याय- समाप्ति पर निन्न लिन्निव अ६ र ज्ञाद् लिखा है, जिस में तीन पद् वही रहते हैं, परन्तु मनुर्थ पद अध्याय में वर्णित कथा के अनुसार बदलता रहता है- भुपाल पालफ भूमिपति पदनेश नंद सुजान हैं। जानै दिल्ली दल दृग्सन कन्हें महा कविफान हैं। या का चरित्र फछ्क सून फट्यो इन्द्र बनाय के ! कई दैच ध्यान का नृप कुल प्रथम मॅक सुनाय ॐ ।। प्रयाग में उद्धन नै छः छन्दी में ५७५ कवियां घः नाम लिन्न कर उन्द ग्राम किया। इससे यद्द झात देता है कि इसमें घात कवि सुदमा से प्रथम के या समकालीन है। कमियां । | फैशव, फार, काय, कुलपति, कालिदास, हरि, 'स्यान, पन, इन्दन, कविन्द कचन, कमच, कृष्ण, षषसेन, अझ करम, कविराज, घर, केदार, निरांना, छगपति, पैम, गगा- पति, गंग, धन, पपन्द, प, गदाधर, पीनाथ, जापर्धन,