पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३५६

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सूदन] छत्तयकृत प्रकरण । 94} 'संन्नत् १८० के कुछ पीछे यह ग्रन्घ बना और इल्ली का प्राभ | से। इनमें दिल्ली चार दक्षिणी इलेफी दुर्गति का वर्णन हर अश्याय में किया गया। इसमें लिया है कि सूरजमल ने प्रथम मेवाड़ छोन लिया और फिर भाजपा में माडगढ़ जीतु । संपतु १८०२ में घाई प्रहमदशाह के सैनिक असदी में फुलैअळी पर धावा किया । सुरजमल ने फ़तेहअली की सहायता फरअसद का ससैन्य संहार किया । इसी अध्याय में घी की जाति, सूरजमल से फ़ौद्द अली के ची फी चर्चित र असद की व्यायान परम प्रशंस- नीय है। सुदन जर एर अध्याध के लिए नई वंदना लिखते हैं। संवत् ८०४ में सुरजमल ने जयपुर के महाराजा ईश्वरी- सिंह की सहायता करके मर झी पराजित किया । संवत् १८०५ में बप्पा सलवल बादशा की तरफ से सूरजमल से उच्च फर परावित हुआ । इस युद्ध का एक द्धन्द नै लिम्रतै :- मतम चाय सुलतान दल अपि सेती समर माप इन्हें छाई है अचल सी । झाछ कैसा रङ्गना काल कनवाल त । घ्याल माल फटि के करन लगा किस ।। सदन नुमान मरदा हरिनारायन । देंच दरिदैच जंगजीत ’ि चवसी । झूझत इझीम अमीरन के घफ में कक्षा ६ जय नें परी ६ धरपत्र संर॥