पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३६२

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७६१ सूदन] उत्तराफ़त ग्रक्रए । गरे मधुसूदन सँवारे बदस प्यारे व्रज रजबारे नेज़ वंस अवधारे हैं। इँति छलफार दूर सूरजप्रताप भारे वारे से छिपेंगे सय सुभट सितारे के ॥ ठि चौ मुकुट समीरे घुघुरारे पार कुडल चुदाय कान को सुधट की। बाबिया जकरि ६ अफर अंगराग कर कट में लपेट कसि पैटी पौत गट की। भृगुपति पकढाल सकति धिया पर चिल्ल सूदन सनाह ममाल लाल की । फैदिन सुभट की निहारि मति सट्टी यां | सुन्दर गापा की धरनि भैप भट की। सुदन फ नै फेशवदासजी की रीति का अनुसरण किया है पर विनि छन्दै। का आयाग करके सुजान-चरित्र के एक बहुत विशद और रोचक अन्चे बना दिया है । रोचकता की मात्रा में यह ग्रन्थ रामचन्द्रिका से शायद ही कुछ कम हैं । इसमें हर विषय का बहुत ही सजीव, सची मैर यास्तव, घटना से पूर्व वृत्तान्त लिया गया हैं। युद्धकर्ताओं के प्याख्यान मेरि महाराजा से दूरी की वार्ता विशेषतया द्रष्टव्य है । युद्ध की तैयारी बर्थन करने में इसकी वरावरी बहुत काव नहीं कर सकते, परन्तु इनका युद्ध पर्यंन उतना उत्कृष्ट नहीं हैं। फिर भी प्रत्येक चुद के पीछे के छन्द बहुत ही प्रशंसनीय ६ । इन्होंने भूपण के मतं पर न चपर केवल सूरजमल को ही बदन नहीं किया है, वरन उनके अनु-