पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मिश्रबन्धविनेछु । [ सं १८१ यथा एवम् अन्य सरदारे में, अनुयापी छटै इंटे उदफर्तामों का भी चा फथन किया है । इरश का ऐसा नशावपूर्ण पत्र हुने प्रायः किसी अन्य प्रन्थ में न घेमा । मूर्दन ने अपने नायिय का जैसा उचित वगान किया वैसाही इसके प्रतिद्वंदी का भी यि । इस विषय में असदा, अहमद, अन्य अर्गन, घास- ६ के राने एवम् सायमन का चयन गाय है। सूदन नै असद, अफगानग, मरह की चढ़ाई और एवरेप के घडुप्तही चित्ताकर्षक दर्शन किये ६ । इद्दण्वार में भी यह फयि मायः किसी से यम ६ र हास्य फी कबिता भी इसने सुन्दर पी है । कहाँ कहाँ इन्होने पर भी अच्छे फटे हैं। एक म्यान पर ब्यूद रचना का भी अच्छी वर्णन ६ । सामषतः यह यद सूरजमल फी पसंद था 1 | पुनर्जी की कविता में मन्न भाषा, स्नड़ी बाढी, माड़वारी राजपूतानी पूरब पंजायो, अदि भापायों का प्रयोग हुआ है और इनकी सः भाषा फी कविता प्रशसनीय है । कालयन का युद्ध प्रायः पंजाव घाली में लिया गया है। ये महाशय थमक मेरि अनुमास का प्रोग अधिक नहीं करवें थे। युद्धघर्धन में इन्होंने निलित थ' या प्रयोग अधिकता से किया है। इन हम बहुतही अद्वया कधि समझते हैं और इनकी गाना दासी थे गी मैं करते हैं। युद्ध की पारी में सूदन, युद्ध-चन में लाल और ग्रातंक ये भागने के चर्बन में मुफ्ण सरपः सर्वश्न ए हैं। इन तीने महाशये फी फनता युद्ध फाय फी छु र है। अपने पूर्वोच, घने के उदाहरणार्थ म फुछ छन्द पुदमजी पे नोचे दैवै हैं।