पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३६५

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१E मिथइन्युदिने । [ १८}} सूदन समर मर घाम की एक विधि घर में जमा रहे ता प्रातिर जम्मा ६ ॥ (व्यू) एक एषः सरसे अनेक में निहारे नन मारै लाज भारे स्वामि का प्रतिपाले के। चंगा उड़ायी तिन दिली की वीर भर | पारी घडु मनु किप ६ मैं इघाल ॥ सिंदै मदनेस के सपूत भी सुज्ञानसिंह सिंह से झपट न द्दीने फरमाल । १६ पठनै? लेल गन खस्ने भूरि धूरे सां लपेटे लेटे भेटें महाकाल के ।। (उच्चान्त) सेल्नु धकेला ते पठान मुख मैला होत कैसे भट मैया ६ प्रज्ञाप भुय भंग में। तंग के फसेते सुएफागो (नय सुंग फोन इग झींनी दिली । दुद्दाई ६ घंग हैं । सुदन सुत सुज्ञान किरदाम, गहि धायी धीर धारि वीरताई की उमग में। दुन्निनो पछेदा कर बैला नैं अभय खेल ६ला मार गग में रुहेला मारे जंग हैं। (युद्धन्ति) (८५६) देवदत्त। इनका धनाया हुआ बैतालपच्चीसी नाम ३५८ पृष्ठ का सुन्दर अन्य हमने देखा है। इसी कविता घुतिमधुर र मनैदर है।