पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३६८

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रिचरणदास] तरतंकृत प्रकरण । इसमें फायप्रिया की टीका भय ही मिस्त्रपूर्वक तथा पदित्य- पूर्ग गी गई है। इसके अतिरिक इन्होंने किया तथा सतसई की भी अनमैल टीफाये की है। सरास की दीका १८३४ में बनी। | ये महाशय कविता भी उत्कृष्ट करते थे। पुमन इनिप्रिया की | टीका दरबार उतरपुर के पुस्तकालय में दी, जिसका प्रकार | रथिल अहुपे च ७४२ पृष्ठों की है। इनके समकश (१८) मै फयिनलभ नामक दी और अन्य भी मिले है । म इन्हें ने कवि का अंशी में समझ हैं। राबे के घायन के नन्न की सुजमा लखि ४ात ३ चंद भलीने । रूप अतालिक की उपमा लहि कंज हिंए में महमिद मीनै ॥ से हिँ नैफ सही करतार विचार से जानत है परवीना । दे बराफ के इल से बिधि मैल कै शाहि बराटक कीने ॥ १॥ इनके उपदविा महाराज अदा पुरविंद नागदास के छोटे भाई थे। (८६०) रामसत्रै ने श्रीनृत्यराघव मिलन (९१ पृष्ठ छाडे), वानरका ( ४ ), पान, दादावली, मगलशतक, पदावली, रागमाला ( ६४ पृष्ठे) भार पद । ६ पृष्ठ ) नामक ग्रन्थ लिखे हैं। ज्ञी छगूर में हैं। इनका कवितामाङ जाँच से १८१५ जान पड़ा। ये साधारय थे शा के फचि धै। संझा पाचन पिय फी लावनि वैसा भारनि अचम्न पळी चलि। मृगया भैप रेत चरनो नृन अरु बन कुसुम स मुजे अरित ;