पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३६९

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मिबिनाद् । [सं० १८१५ लिये कर कुही तुरंग फुदायत जुलफ को वैज्ञ पि थलि। मसये यद यि पीने सन ने गेद्द फुङ लाज प्राज्ञ दल ॥ लीज़ से इनके त घरासपद्ध" का पता और चला है। (८६१) मेवादास जी ने १०६ एदी की एक घानी कहाँ, । [म ने छमपूर में देवी । इनकी बबिता-काल ज्ञच से संवत् १८१५ आन पड़ा। ये साधारग्ध अं' के यव थे। ये बीइट ३ देलसंड में ब्राह्मण थे। इफिरि ६ सी नौकरि ६ । अपना दृसि जाने श्री रघुवर दुसद् दीप सय इरिई ॥ असिा फाँस छेडाय दया का दिनु कारन नितई। मेहनदास भयेर नय पिप का कटु फा* भच इfi.४ ॥ (८६२ ) सहजीबाई । ये घाई जा चण्यास जी पी ली और हरिप्रसाद इलर की कन्या थी । चरणदासजी का जन्म संयम् १७६० में हुआ था | अनुमान से इनका फर्पिता-काल संवत् १८९५ ज्ञान पड़ता है। हों ने अपने गुरु का संयत् पयं पता लिम्रा है। सर्जेदाई ३ भगवद् भकिमर्षी कविता की प्रार इस रस में दड़ कर कई अन्य बनाये, जिनमें से सञ्चाप्रकाश का वर्णन मदिला- गुड़ वाणी में हुए हैं। इन की कविता में ईमन की भांति नीति का भी कथन है। इन की रचना बड़ी हो हदपद्माण एव' तब प्रकार से प्रशंसनीय है। इनकी मापी में राजपूताना के भी याद । मिळे गये हैं से वह मजमाप वया राजपूतानी का मिथय ।।