पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३७

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दावा] पूलंकृत प्रया। 9५३ | ई झुठ न घायं सति की निन्दा सुनै न कीन । | क्षित घर जुवढी जनन ग्रनै पर घन गरल समान ॥ (३८६) क्वीन्द्राचार्य सरस्वती ब्राह्मण । इन महाशय ने शाइ चादादेमी की प्रशंसी में "बौद्रकल्पलता' नामक ग्रंथ बनाया, जिसमें घुल १५० छन्द बाराक घाइशद व उसके पुत्र इत्यादि की प्रशंसा की गई है। इजही की समय सैयद् १६८३ से १६१४ तक हैं। इसी के बीच में पह अंथ देना होगा । सम्पन्नता कृवि जी का जन्म-फाड़ में १६५० के गग म । सं० १६८७ में समरसार नामवः इनफा द्वितीय अन्य घना | इस विचार है ये मशय तुलसीदास जी के मकालीन डरते हैं। सरेराज में इनका संवत् १६२३ दिया हुआ ६ अर्व शायद शाहजहाँ पा इको स्वयं जन्म भी न हुआ है । अवि त के भी पूर्वं पिहान् थे । इनकी सानुप्रास या में भज्ञ और अवघ फ बालिचे फा कुछ कुछ मिथ है मए घटित है। इम इन पर फी भी मैं रजते हैं। उदाहरण जप- मदर ते ऊँचे मन मन्दिर ए सुन्दर है | मेदिनी पुन्दर पुर दरसत है। यि नै हुरूखि त नगर विलास उम्भि रूप फलात हैं वै अति सरसत है ॥ दुंदुभि मृदुंग नाद धिविध सुपाद ज । साहिब प्रति मुख लरत है।