पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३७०

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सङ्घ ] उरालंकृत प्रफरनु । ७८३ इन को इम छत्र फर की श्रेणी में रमतें हैं । उदाय नीचे लिखे जाते हैं। सजा तारे सब सुखो गई ६ चा सुर। साधु चाहे दीनता बई बडाई कुर॥ भली गरीबी नबनता सके न केाई मारि। सजी रुई कपास की काटे ना तरवार ॥ खाद्दन ॥ तो मैं सना सजा निरनै रक | कुजर के पग चैडिया चटी कि निर्मक ! प्रेम दिवाने हो भये मन भेा चफना चूर ।। छुके र घुमत रहे सद्दा दैछि इर.॥ नाम (८६ ३) महंत सखीसरन अर्याध्या वाले। न्ध—(१) गुरुममालिका, (२) मज़ायी ( स० १८१६), (३) उत्कठामाधुरी। समय-१८१६॥ विवरण–गुरुयनालिका में निम्बार्क प्रदाय भी प्रणाली का पन पप उसवे का कधन ला तथा देश में किया गाया है। ये ग्रंथ इमने दरवार, छतरपुर में है। काव्य मन श्रेणी का है। इन का समय ज्ञान से मिला था और पीछे से पर्दा मजायली में भी निकट अयिो । (८६ १) सुन्दर कुवरि वाई । ये रूपनगर तथा ऋगद के राठौरवशी महाराजा राजसि ६ की पुत्र यी । इनका जन्म सवत् १९९१ में हुया । राघवगढ़ के