पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३७१

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१E मियन्यूपिनाद। [सं० 115 ची महाराज बल्लभद्रसिद जी के कुवर प्रवन्तसिंह के साथ इनका विरद्द सर्वस् १८५२ में हुआ। इनकी माता मद्रराज पावती जी थी, जिन्होंने भागवत की इन्द्रौपदइथा क्यिा रेसा कि ऊपर कहा जा या है। इनके पिता, पितामई मानसिंह तुपा प्रपितामह सिंड्जी सदैव से स्वयं सुकृति तथा कार्ययों के प्राध्यदाता रहे । इनके भाई सुप्रसिद्ध नागरीदास जी और बहादुरसिंह जी तथा इनके भी विरसिंह जी भी कविता वरले थे। इनके घर की एक लेडी धनौठन ने भी रसिकपडारी के नाम से चेता की है। इन बाई जी के पिता और पति के यहाँ शपुग्न से सदैव लाई झगड़े लगे हैं, परनु तभी इन्होंने कविता से इतना प्रेम रफ्छा कि १६ भन्यों की रचना कर डाली, जैसा करने में प्रायः बड़े बड़े कवि भै समर्थ नहीं हुए हैं। इनके पथ ये हैं- () नेहनधि स० १८१७ पनगरमध्ये ! (२) इन्दापनापीमाहात्म्य स० १८२३ रुपनगरमध्ये । (३) सर्फत सुगल स० १८३० फुप्पगडमध्ये {4) रसपुज़ स १८३४ धागढमध्ये। (५) प्रेमसपुट सु. १८४५। (६) सारसमद् सः १८४५। (७) गझर स १८५५ । (८) सेपोमास्यि स १८४६। ९) भावनाप्नका सः १८४९।