पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३७२

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दरिदरि ] उत्तरलिकृत प्रकाष । H८१ (१०) राम रहस्य स. १८५६ । (११) पद तथा पुटकर कवित्त । इनके उपर्यु प सब अन्ध इँदी महाराज की माता जी की कृपा से मुद्रित हो गये हैं। इनकी गना मसाप फांचे फी श्रेणी में करते हैं। इनकी रचना यही सरल तथा मनोहर हे । प्रह्सुकवि फी सा है और फि रख से पू है। इनकी भाप शुद्ध भाषा है और उसमें मिलित च बत कम आने पाये हैं। इन्हें हर मकार के अन्द सफलतापूर्वक कहे हैं घर अपने छन्दों द्वारा अपने पिता ये कविपुल का र भी मासित कर दिया है। कुछ छन् नीचे जदूत करते हैं :- अक्षा सहि घनश्याम की असली घाई हो । जहाँ पिराजित मानी श्री राधा रुस पुज 11 कड्री जद्दरी श्याम की लद्दर र सरसान । काटि सुधा सरितन सिंचत सैट सुवा गनै न आन । घूमन भने घुमत सुन्न । इनमौल घुमार। थकित अयन गति सिथिल बदि अन उतरन तयार ॥ इयाग न सागर में नैन चार पार थके नचत तग या पग पग मगा है। भाजन गाह्र शुने चाजन मधुर बेन । नागने पलक जुग साधे सगलगी है। भैपर सिगनई पाप लुनाई तो माती, भनि ज्ञान की क्वाति अगमगी हैं।