पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३७६

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१८६ अन्न . उत्तरालंकृत प्रकरण । नाग–(६६६.) चन्द । ग्रन्थ-भवानमुधाधिन । समय --१८२० । विवरण इस प्रेथ में कुल १५६ पृष्ठ ६ । इसमें विपक्या संवैया एवं कवित्त हैं। अन्य छंद भी कहों की हैं। यह ग्रंथ हम ने दरार छतरपुर में मेषा है । इनकी गाना साधार' श्रेण में है। मज्ञ की निता जिन के। हु रूप निहारत प्रति से नैन सिरायत । जागा बड़े मुनि मन ध्यान किया ही कर मै बिए नहिं आचत । । मति च द करि जनिन मेम ही से बना यह पाषत ।। राधिका बल्लभ ही मन गावत यहीं वे चंद् सदा इस गावत ।। नाम-(८७०) नागरीदास वृन्दावन वाढे, स्वामी पीताम्बर दास जी के शिष्य। ग्रन्थ स्वामी जी के पदन की टोका । समय-१८२० ] दियश-इसमें स्वामी रेटास, विरिनिदास, विट्टल विपुल, सरसइसि, नरहरिदास तथा स्वयं इनके पदों की टीका विस्तृत रूप से की गई है। यह फूल्स कैप सूची के ३२५ पृष्ठों में है । इनकी कविता-गरिमा साधारण थे की है। यह पुस्तक इम ने दरयार छतरपूर हैं। देवा है। इन बा समय जान से मिला है।