पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३८

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मिध्यन्धुनेछ । [सं० १९८८ पारागार से मुक्त कर दिया । इसमें रेभापती प सुरकुमार की कपा घट्टै विस्तार से पन की गई है। प्रन्य में यक्ष भाषा बाट vीं कह प्रम मिश्रित भाषा फा प्रयाग ! छन्य बहुत प्रकार के हैं, परन्तु हा एवं चैपाये वी प्रधानता ६ । कुल २६६ द प ५५६ पृष्ठों में भ्रन्थ समाप्त हुए हैं । पिता अच्छी है। इम इन छत्र पते थे ग्या में पलें हैं। उदार'- घले मत मर्मत भूमंत मचा , मन बदल स्याम माधवलंता । बनी मागी रूप रात दंता , मन घग्ग प्रापद पति इदंता ।।। लसे परत खाले सुढालें छला , मनचंचला च छाया रफ । फदछ । ० चन्द फी उभारी प्यारी नैनन निद्दारी पर चन्द की कला में दुति दून दरसाति है। ललित छतानि में उनासो गदि सुकुमार | माडती सी फूले जब मृदु मुसुकाति है। पुफर' कहै जित दैरिए विरा तित परम विचिस चा विष मिलि ज्ञाति है। यै मनमा६ि सय र मनही में पडि नैनन बिले दाल वैमन समावि ४॥ २ इनफी पुस्तक हमने दरबार छतरपुर में देखो। स्त्रज्ञ से पता - चलता है कि यह प्रतापपुर जिला मैनपुरी के थे।