पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३८०

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उचात करया । 15है। र अनुप्रास एवं अ५ दानों को अच्छे चमत्कार' दैन्न पड़ता है। में इन्हें पद्माकर की श्रेणी में रखे। | छाल ६ भाल सिंदूर भरे। मुख सुन्दर चोरु जु शहु विसाद्ध हैं। साल में लगुन के डर से इतै सिद्धित सेमि कला र भाल है । I हैं दत्त जू सूरज केाठि की प्रेटिक फाटत संकट उजाल है। जाऊ है पुजिबिधैफॉन फी पद पारबती की लड़ाहता लाल ६ ।। ग्रोपन में तय भसम भानु गई बनकुज लखान की भूल से । काम से बाम लता मुरझानी बयार करें घम स्याम इल वां ।। कंपरा में प्रगट्यो सुन स्वेद उद्भन दच ॥ ॐड़ों के मूल हो। हैं अन्द फलीन १ माना गिरं मकरन्द गुलाब के फूळ से ॥ | (८७४) पुखी कवि । सज्ञकार का कथन हैं कि ये महाराज प्राप्त थे और मैनपुरी | के सभी कह रहते थे। इनका कोई अन्य म मिन्ट । | संवत् १८०३ में उत्पन्न हुए थे। इमने इन महाशय क्रौ फुट कविता संग्रह। एवं त्रिनी वैसी सुनी हे जे आदरणीय है। हम इनके ताप कवि की ४ या का समझते हैं। फुले अनारन फितुर दाएन बँत माद मधी घर मर्चे। माधुरे फौरन अप के वैरिन भैरम के गन मंघ से व ॥ लागि रद्द बिंद्वी जमके कचनारन बीच अचानफ ३। साँचै हुँका पुकार पुगी द नाचे घनग बनत की पावै ॥ १ ॥ सिंघ मरयर की सुथारी सरचर' पारि फूले तयर सघ विपिन से चारो है।