पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३८१

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मित्रपत्रिनाम् । { १० १८ शादी त प्यारी ला रसिक, बिहारी पुची अन उजियारी इसे धाइन पार है। कान में रौना दि परसि परधर का धरनी परत वा झरि झनफाप्यो है। राप भरपूर शिय ज्ञान के फल कूर | मानी चैदनुर चद्दर करि रियो ६ ॥ २॥ । धीनस बारे प्रचीन मिले हैं। फाई सु । सुन्ध सुधरी। फायर रन में ही कह नि चान घाउ यावें ।।। जा से गुनी फा मिले निगुनी तो पुखी का प्य कर, ताधि रिझायें । से नपुसक नाए मिले है। कहाँ लगि नारि सिंगर बनावै ॥ ३॥ (८७५) रतन कवि ।। इन्होने अपने अन्य में सपत् या अपना पता युद्ध नहीं दिया। रिसर्फ इतना ही लिन्ना है कि फनै हशाह श्रीनगरनरश की माझा से फौकाश अन्य रचा। फतेइशाह के पिता का नाम अन्य में मेदिनी साहि दिया हुआ है। सरोकारने इन उत्पक्षि फा सषष्ठ १७९८ पय श्रीनगरेश शशा फतेसाई ३ देर के यही इनको देनी लिया है, और इनके दूसरे झन्थ का नाम फनैदमूपए कद्दा है, परन्तु इन्होंने राजा फतेहाद की गदवार पर राज्ञा लिधा है, अत• यद् गद्धचाल फा नगर समझ पड़ता है। इस अन्य में फान्य गुण, ब्यङ्गना, ग्वा, रस, ध्वनिक्द, गु भूताई अष्टव्यम्प, दे मेर पक्ष में सविस्तार अलकार का वर्णन है। उदाहरणों में प्रापः रामः की प्रशंसा के छन्द लिये गये ६ चै उत्कृष्ट ६ । भापा इसकी पति