पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३८२

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दरम्झझकरण ५१५ ही मनु शुद्ध ब्रज भापी है। इसमें अहंकारी का वर्णन एन आर किया गया है धार बहुत ही माझे के उदाहरण दिये गये हैं। यह शापा-रीप्ति विपE एक प्रशंसनीय प्रन्थ हैं। इस ग्रन्थ में फुल ४६९, छन्थ हैं। इन इस कवि की दास जी की श्रेणी की सम है। वैरिन की वाहिनी के भीम निदाघ रधि कुवलय कैलि को सरस लुफिय हैं। इन झर सिधुर है जग के बसुर है। विप्न फुल्ने फे फलिदा कामत है ॥ पानिप मनिन के रवन रत्नाकर कुर पुन्य जननि की छमा महाधरु है। अग की सनाई वनराष्ट्र के मा के नाह महाबाद फतेह के मर वर हैं । काजर की केर सारे भारे अनियारे नेन | काई सटका वार छहरे छान् ॐ।। श्याम सा भरार भरक मेरे नाम की औपयारी प्यारी र सदन सुपारी ३ ।। मृग मद में दी भाछ में दी पाद्दी भरन रन लियै की तुदै ‘भा रति ही अचे। नौ भुनी के तैले लु दर सुदात मी | चद् पी रहे इमानी सुधावेद है ॥ (८७६) नाथ । इस नाम के कई फयि हुने गये हैं, एक भगवत राय खाद्य के नाभित थे और एक अनारस निवासी जे सत् १८२६ के दाम