पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३८४

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इरिनाथ ] इतरांना मकरए । ग्रंश पृथशाह मुहम्मदशाह इतिहास-सम्बन्धी है जो विलायत के अज्ञापम यर में न० ६६५ पर' का है। इनकी झापा प्रजभाषा है र धड़ साधानतया आयी है। हम इनकेा साधारण श्रेणी में रहते हैं। रेवति रिसात मुसुकति अरु हाहा स्वाति मद के करत धन जावन समाज है। आगमन पीतम की सुरत छयाली चाछ। हरग्रि जाति हिय हैन सुम्य साज । राम के जनम रहे दान दफार चीच चियः । स िनध्य ईचे घारे गजराज हैं । नाथ जू भनत दुख प्रेत फ पयारो किता मंतक या गरी जान्पं मन आज हैं। तनी लग्नति प्रकास हैं मालक्षि लक्षति सुयास। मैरिस गरस देत नई गैरस चदति हुनि ॥ (८७८) ब्रजवासीदास । यै माहारज पल्लभाय के लोग्रदाय में थे। ग्राचार्यबंशाभूप इन गोसाई इनके गुरु थे। इन्दने “प्रधचंद्रोदय" का भापा- नुवादि विधि छन्दों में किया, मिन की भाषा बड़ी वाली मिति प्र पा है और प्रशंसनीय है। यह ग्रंथ रायल अठपैजा के १३४ पुर्डो में समरा हुआ है । आपने संवत् १८२७ में 'प्रज्ञविलास' नामक क. सदिय इम्य धाया ! इसँ गन्ध में उपर्युक्त बातें लिया हुई हैं। अपने अगदै विपय में से कुछ नहीं लिया है। ठाकुर शिव-