पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आपसी ! पूर्व प्रकर..! | (२६,०) जायसी कचे को रचनाकाल १६८८ । ये महाश तैप कवि की धैर में है 1 इनका सिर्फ एकहीं छंद मिलता है । परम विशद हैं। चि पप झसे दई में तेहि की गु त गनी नगु है। 'अव ऐसे में श्याग चुला, भटू फटु ज३ फ्यों पंकु मया मगु ६ ॥ अधराति प्यारी में सुझं गी भी जायसी हुतिन के सँग ६ । अब ना तो जात भुपेर गुरो ग रात वा जात सबै रंग है ।। (३६१) छूषसागर जैनी पद्धत में संच १६८९ में इन विषय का अज्ञासुन्दरीसंचदि ममिक ग्रन्थ रचा। | (२६३) चिन्तामणि त्रिफळी । महाराज रत्नाकर के चार पुत्र में ये महाशय सच से चर्चे थे। न के तीन आई पण, मतम पैर झटाक थे। इन वे अन् से एन की उत्पति के संवत् का चोक पत्ता नारा लाता। भूपों की कविता से मने निकर्ष निकाला है कि इन का जन्म-काल संवत् १६७० हूँ लगभग धा । इस विचार से चिन्तामगि का जन्म काल संवत् १६६६ के लगभग नानना चाहिए। में महाशय तिकर्यापूर जिला कानपुर के थासी थे। इस मा का चन भूरा की समावनी में है। ठाकुर शिवसिंहजी ने पा ३ कि चेन्नमाम्य जी "वहुत छैन तक भागपुर में सूर्यवंशी आँखला मकरन्द दाधु के यही रहे और इन्हों के नाम ‘इन्दुविचार नामक पल बहुत भारी ग्रन्थ बनाया और काव्यविवेक, कविकुल-