पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३९०

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मेडनावादि 3 इसराकृत स्रए । गोपीनाथ का बनाया हुया भोपाभारत से इधर कई अन्य देने में नहीं आया, परन्तु इनके स्फुट छन्द भी इधर उधर पाये जाते है। मणिदेव का भी कोई अन्य ग्रंथ हुमने नहीं देखा परन्तु राम- चन्द्र की प्रशंसा में इनके बहुत हैं छन्द हैं हैं। इन तीनों कवियां ने मिल कर काशीनरेश महाराजा उदितनारायसए फी माशा से एत महाभारत और हरिवंश का भादा इन्दो में बड़ा ही गिद्ध- र मार प्रशंसनीय अनुयाद किया । इसके द्वारा इन तरी शबियां का कथा प्रासंगिक माषासाहित्य पर बहुत बड़ा उपकार हुआ है । कथा प्रसंग की इतना घना झन्ध और कोई भी नहीं है। इसमें कुल मिलाकर १८६६ पृष्ठ है और इन पृप्नों का साकार पल अइपैनी का दुगुना है। फिर भी मैं छाटै टाइप में छपे हुए हैं। इनके समय तक का मसंग की कविता में छन्दों के विषय में तुलसीदास धार केशदाल चाल दो प्रणालियाँ थीं । प्रथम में दादा झैपाइ तथा द्वितीय में विविध छन् । विशेपत्ता सय एव घनाक्षरियों में रचनई करने की परेपtी स्थिर हो गई थी । यि में एक प्रकार के छन्द एक साथ बहुत नहीं हिने जाते थे मैर छन्' शीघ वदले जाते थे। इसके उदाहरण केशवदारा, गुमान %ि; पुदन भावि हैं। इन कवियों ने देखा होगा के फेवळ दैाहा पाइये में रचना करने से यदि मैं छन्द बहुत ही इसम न भने इनना चड़ा अभ विलकुल फीका है। जायगा जैसे कि बहुत से ग्रंश हो गये । इन्दने यह भर सेना होगा कि जुल्दै छन्द यदलने से इतने पड़े मग्य बनाने में कुलझाय्यता मिलन टिज है। शायद इन विचारों से इन्होंने एक तीसरी प्रया