पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३९२

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कुलनापदि ] अत्तरावंत अरु । ८०५ रामथान पर्यों तथा शान्ति-पर्व के शेप प्रायः २२५ अध्याय | रचना की । वन-पर्च के शैष चार मध्यायां में से पीनाथ र मय में देा अध्याय घमाये । इस हिसाब से महाभारत इन ताने महाशयां ने आकार में गई बराबर कविता की । ",धद्धता है कि इन तीनों कवियों ने महाभारत और हरिवंश 'मलाकर तीन बराबर माई में दिक्त करते पक एक भाग नि अनुघाई फर डाला।

  • व्यास में इतनो बृहत् पुस्तक बनाने में भी उसे ऐसी युक्ति

ने बनाया कि वह प्रत्येक स्थान पर रोचक है। उनकी इस पड़े न्य में विपश होकर कुछ ऐसे विपय भी जलाने पड़े, जे चिकेर नहीं हैं, परन्तु वे इस बात को पहले ही से जानते थे, अतः उन्होंने बहुत से क य के दीन फद्द कई थाड़ा सा अरोचक विषय पसा लिए मिला दिया है कि उसकी अरोचकता अपरती नहीं है। हमने इन कवियों के इस चूइस् ग्रन्थ का प्रायोपान्त कम से पढ़ा है, परन्तु यह किसी स्थान पर भी परुचेकर नहीं हुआ। यदि कोई वाहक इस अन्य को पड़े ते। उसे भी कवित्वं शक्ति प्राप्त है। सफर है। हमी घायाघस्या में सि अन्य के पढ़ने की बड़ी च थी, क्योंकि इस में अत्यन्त रोचक बाधाये हैं। हमारे सम्बन्धी विशाल फधि भी इसे बहुत पढ़ा करते थे। विशालजी के पर्व हुने कचिंता करने वा रुचि पैर कचिच-शक्ति पहले पहले इसी प्रय से प्राप्त हुई थी। हम ढा व मधम प्र की रचना भी इसी इरन्थ से मिलती थी। यद्यपि पीछे से यद् शैली छूट गई।