पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/३९५

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FF मिमग्रन्धुदिद। [सं० १८२८ चैतर्वाद। च पालै पगरी के उ” फि*इल यी प्रतिमा मुख दरी। होसिय रेल से जुलर्क रहें ए६। मानव धर्याित पावै ॥ गोकुलनाथ किए गति अनुर चातुर की छथि दैग्रिन वारी । ग्याल ते कट जात घयो फहरात ऊँधा पर शेत पिारी॥ भयाभारत मापा-- इते हुम शिशुपाल को सुनि शाव नृप कर घ सदिचे सेनः आय को ज्ञापन का अन्न । हद नाना भांति रिक्षत पुरी से प्रति मान ।। दसत जामें वृम्नि जादव पीर पर अलचान ॥ शन्न नामा भरि के अति उग्र जप उदार । सहित पुर के मेरि घारी धन्न सार प्रकार और चा मान परिम्ना भरी सलिल मर्न । परी घुञ्जन १ भुपु मत प्रायते सर्व ॥ दुर्ग अति महत्व र्याप भरने से पहुँ । तीन घेरा शव भूपत सेन ले अठं बार ॥ एक मालुम निकसिने की ही नितई न राइ । परी सेना शान्य नृप की म जुद्ध वाद् । बाब नृपति का प्रति थल मान। पिव गुरी सिम र जान्न । तय प्रद्युम्न कसि घळ पैन । मैं सुभटन से चाले चैन । समाधान से सुम सब पीर । ठाढे ६ रा धरि घरि ॥ हा एनारा सुख महीने । शान्य नपारन करत सुजान में, विसित सरन से। सेना मारि । ३न शान्य फी महि ६ द्वा ॥