पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४०२

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=थिईव] विधि एफ मुहूर्त उडि भा कइत ईसाई दे। प्रगट करिए कला निज मग फला इतनी है । ईस सुनि इंसि चले पनि मेरि सागर पत्र । | चला ताफे सँग बापस चपल कीन्हें पत्र ॥ संदर्भ में पाछु दुरि ला यदि अपि था। काग। वृन टापू में बिन तजि धीर दरपन टाग 1 शिथिल है मैं पक्ष रुप गिरि परे सागर माह । | देखि हैसि ख़री ३ भै फहुत सजनाएँ। पाङ्गिन्नत फरिः म मल्लन चलहु चायस फत। एक शत पैजन इटा ते उदधि का ? पत ॥ की शत में उड़न की यई चारु विधि है न । वारि में परि तुद्ध धेरत कढत है। गहि मैन । , बचन यह सुने नोच घायस पो आरत वैन ! देधि निज दिल क्षमा फेरि अय मैहि दो चैन । सुनै सूरज काग के सुनि बचन इंस अमंद। | परि पग से ल्याय थल ६ दिये। डारि स्वछन्द ॥६॥ इमि सुभटन से टैरि, भीम पराक्रम भीम भट। घुसासन शन हर कद्दत भया अमरच भरा। तत्र तैा मैनेन पाने करन की इम मधि सभा ! सो अष करत सुजान सकस शान कर फोन नट ॥ नृप यह सुनि ती सुत रनोरी । कद्दत भये इस वचन भीरा it 5 मम फर फरि कुंभ विदरिन । देनदार गे यानि इजारन । इन वल तुम सरसस हारे । घर्ष त्रयोदश विपिन बिहारे ५