पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४०४

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मणिदेव ] पुरासनंकृत प्रफर 1 कहाँ निद्रा अतु' अर भरो अन्न ताई। यहां निदा ताई घेरे मद्दा चिंता जाहि ।। सफल २ मम हिप निवसत फ निद्रा में ! पिता के वध से अधिक दुग्न फोन यूमत है । बिम म ज धर्म तजि के यो क्षत्री धर्म । फर्म क्षत्रिन फे फरब अब उचित तनि के भनें । झूठ फदि इजि धर्म उन मम पिवई दारी मार। सथा अब म उधव इन कई मोति धर्म बिसारि ॥ न्याय दिन लरि दुनु हो र सरनस जति । फरि अधर्म जीते रह सर्बस जाति काठ ।। समितु फार्य तत्पर भजन निञ्चन नियुध पाय। सेवित निदि । लहि समय शत्रु मारई न्याय ॥९॥ ( ८८३ ) विनाय द्विवेदी । यै महाशय फान्य सुद्धा प्राह्मण मैज़ा फुरसी जिला बार्षी अवध प्रदेश के रहने वाले थे। इनका नाम दियसिंहसरीज नहीं है। ये माशय पैधाये के इराकर कुदाळसिंह चैम के पहां बहुते थे। यह यान ज़िला हाई अपध देश में है ! शिवनाथ जी ने ' ए' नहि एक अन्य बनाया है, जिसमें उपर्युक्त बातें लिया हुई है। इन्होंने अपने ग्रन्थ का संघर् नहीं लिया। पता लगाने से जान पड़ा कि वर्य' के ठाकुर फुद्धसिंह संवत् १८३१ में स्वर्गचासो हुए थे, और इनका ग्रन्थं सं १८६८ में चना । यह याद कुशालसिंह के घंशपर ठाकुर, सर्वजीतसिंह वर्तमान ताल्लुकदार इँबाँयां ने पर