पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८१। । मिभ्रषन्धुविद । [सं० १८॥ याद र आता है, जिसपे कि अन्य आचार्यों ने अध्याय में कहा है। सीन गेा में थर श्री मनोराम ला दिये पंई वृद्धि के मानपे । बीस हारे। सुनी बन्दि है मीच फी संत गा से पयारी धर्म शान्तिये ॥ अंत ली ते सुमास सुन्यै फले मध्य गा जा रयीरोग पाइरनियं। | दिगा भाशदीफीर्ति के देइ ला तीन नै। नाग पानंद फाटानिए। इसके समझने के नीचे चम, दिया गया है। नाम गण मगन यगन|रगन सगन तगन जगन भगन भगन पगड़ फा रूप $[15 ] [if |३|| गण पेपता घर। अम्बु ढाँझ पनि प्रकार सूर्यय/शि मग | गण का फल है | मृद्धि मीच काम | शुन्य | राग फीति आनंदी | इस छंद में गई के नाम एव देवसाई के नाम के प्रथम पेश दिये गये हैं बैर उस पर छंदू पृर्थ होने के विचार से जै मात्रायें लगा दी गई है, उन्हें अर्थ समझनै समय निकाल देना चाहिए, जैसे सी न गै। मैं भरा श्री का अर्थ समझना चादि कि तीने गुर होने से मगन होता है, उसकी देवी पृथ्वी ६ घर उसका फल उदमी है। इसी भांति अन्य स्थाने पर भी समझन् घचित है। धूप मन्थ' | ने ये फाप ये सूपरा नद्द झ६ जा सकते हैं इनी मति प्रायः