पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/४०९

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८५६ निबन्धुयना; । [ सं १८६० (८८६) तीर्थराज । इनका नाम परागी लाल था और ये घरम्रारी के निचार्मी थे। सं० १८३० में दिने रसानुराग नामक ऋगार इसे का सुन्दर प्रय पनाया। इनफी कता डॉलर पर अनुप्रासपूर्य धोती थी। इम इन्हें तैप की श्रेणी का कवि समझने हैं। छपे इपि ज्ञात चव घपि चर्षि शाह मुटु सुन्दरता देनि घटु सुन्दरता ती की है। गिरिजी फा ई सुरी सिरिज्ञा कहा है जाति जलज्ञा कद्दा है का काम कामिनी की है । का चीर्घराज सुचि हुन्धर रन सील उपमा परन मन इरन उनी वा है। नग्न सिन्न नीकी गति नीकी, मवि नीकी सी की ऐसी छवि नोंकी पृषभानु नन्दनो की है। | (८८७) योधा फीरोजाबादी । | पंडित नकछेद तैयारी में भाषा के कवियों की जांच पड़ताल में प्रशंसनीय भ्रम किया है। उन्दी महाशय ने बुन्देलखंडी पबियेसे पूछ पाछ कर वाधा का भी जीवन-चरित्र छिया है। उनके अनुसार गधा कवि सरबरिया माझ राजापुर प्रयोग हैं रहने वाले थे । शिपसिंह जी ने भूल से स्वामी तुलसीदास के जन्मस्थान दिपुर का प्रयाग के जिले में लिखा है, यद्ययि पद चौदा में है। जनपढ़ता? है कि उसी भूल से वैवारी जी ने भीराजापुर के प्रयोग में बताया